Friday, May 4, 2012

Prerna Dayak Kahaniyan


                 शक्ति जीवन है, दुर्बलता ही मृत्यु             Hindi Short Motivational Story - 

                 Prernadayak Hindi Kahaniएक बहुत बड़े ठेकेदार के यहां हजारों मजदूर काम करते थे। एक बार उस क्षेत्र के मजदूरों ने अपनी मांगों को लेकर हड़ताल कर दी। महीनों हड़ताल चलती रही। नतीजतन मजदूर भूखे मरने लगे और रोजी-रोटी कमाने के लिए दूसरी बस्तियों में चले गए, लेकिन दूसरी बस्तियों के गरीब मजदूर इस बस्ती में आ पहुंचे। ठेकेदार नित्य ही ऐसे लोगों की तलाश में रहता था, जो उसके ठेके का काम पूरा कर सकें। अत: एक दिन वह बस्ती के चौराहे पर आकर खड़ा हो गया। तभी एक मजदूर कंधे पर कुदाली रखे वहां आया। ठेकेदार ने उससे पूछा- क्या मजदूरी लेगा? मजदूर ने कहा- बारह आने। ठेकेदार ने उससे कहा -अच्छा दूंगा, जाकर मेरे ईंटों के भट्ठे के लिए मिट्टी खोदो। इसके बाद एक दूसरा मजदूर वहां आया, ठेकेदार ने उससे भी मजदूरी पूछी। वह बोला- तीन रुपए। ठेकेदार ने उसे खान में कोयला खोदने भेज दिया। तीसरे मजदूर ने बड़े ताव से दस रुपए अपनी मजदूरी बताई। ठेकेदार ने उसे हीरे की खान में भेज दिया। शाम को तीनों मजदूरी लेने पहुंचे। पहले ने सौ टोकरी मिट्टी खोदी। दूसने ने दस मन कोयला निकाला और तीसरे को एक हीरा मिला। तीनों के हाथ पर जब मजदूरी रखी गई तो पहला मजदूर तीसरे मजदूर के हाथ पर दस रुपए देखकर नाराज होने लगा। तब ठेकेदार बोला- तुम्हारी मजदूरी तुमने ही तय की थी। जिसमें जितनी शक्ति और इच्छा थी, उसने उतनी मजदूरी बताई और सभी ने काम भी उसी के अनुरूप किया है। यह सुनकर पहला मजदूर चुप हो गया। सार यह है कि शक्ति ही जीवन है, दुर्बलता ही मृत्यु है। अत: आशावादी, दृढ़ व अनुकूल विचारों को अपनाकर तदनुकूल कर्म करना चाहिए।
प्रयास करते रहें
पाब्लो पिकासो ने कभी कहा था, “ईश्वर बहुत अजीब कलाकार है. उसने जिराफ बनाया, हाथी भी, और बिल्ली भी. उसकी कोई ख़ास शैली नहीं है. वह हमेशा कुछ अलग करने का प्रयास करता रहता है.”जब आप अपने सपनों को हकीकत का जामा पहनाने की कोशिश करते हैं तो शुरुआत में आपको कभी डर भी लगता है. आप सोचते हैं कि आपको नियम-कायदे से चलना चाहिए. लेकिन हम सभी जब इतने अलग-अलग तरह से ज़िंदगी बिता रहें हों तो ऐसे में नियम-कायदों की परवाह कौन करे! यदि ईश्वर ने जिराफ, हाथी, और बिल्ली बनाई है तो हम भी उसकी कोशिशों से सीख ले सकते हैं. हम किसी रीति या नियम पर क्यों कर चलें!?यह तो सच है कि नियमों का पालन करने से हम उन गलतियों को दोहराने से बच जाते हैं जो असंख्य लोग हमसे भी पहले करते आये हैं. लेकिन इन्हीं नियमों के कारण ही हमें उन सारी बातों को भी दोहराना पड़ता है जो लोग पहले ही करके देख चुके हैं.निश्चिंत रहिये. दुनिया पर यकीन कीजिये और आपको राह में आश्चर्य देखने को मिलेंगे. संत पॉल ने कहा था, “ईश्वर ने जगत के मूर्खों को चुन लिया है, कि ज्ञानियों को लज्जित करे; और ईश्वर ने जगत के निर्बलों को चुन लिया है, कि बलवानों को लज्जित करे”. बुद्दिमान जन जानते हैं कि कुछ बातें अनचाहे ही बारंबार होती रहतीं हैं. वे उन्हीं संकटों और समस्याओं का सामना करते रहते हैं जिनसे वे पहले भी जूझ चुके हैं. यह जानकर वे दुखी भी हो जाते हैं. उन्हें लगने लगता है कि वे आगे नहीं बढ़ पायेंगे क्योंकि उनकी राह में वही दिक्कतें फिर से आकर खडीं हो गयीं.“मैं इन कठिनाइयों से पहले भी गुज़र चुका हूँ”, वे अपने ह्रदय से यह दुखड़ा रोते हैं.“सो तो है”, उनका ह्रदय उत्तर देता है, “लेकिन तुमने अभी तक उनपर विजय नहीं पाई है”.लेकिन बुद्धिमान जन यह भी जानते हैं कि सृष्टि में दोहराव व्यर्थ ही नहीं होता. दोहराव बार-बार यह सबक सिखाने के लिए सामने आता है कि अभी कुछ सीखना बाकी रह गया है. बारंबार सामने आती कठिनाइयाँ हर बार एक नया समाधान चाहतीं हैं. जो व्यक्ति बार-बार असफल हो रहा हो, उसे चाहिए कि वह इसे दोष के रूप में न ले, बल्कि इसे गहन आत्मबोध के राह की सीढ़ी समझे.थॉमस वाटसन ने कभी इसे इस तरह कहा था, “आप मुझसे सफलता का फॉर्मूला जानना चाहते हैं? यह बहुत ही सरल है. अपनी असफलता की दर दुगनी कर दीजिये”.
किनारे बैठकर स्वीकारी उसने लहरों की चुनौती Hindi Short Motivational Story - Prernadayak Hindi Kahaniएक व्यक्ति नित्य ही समुद्र तट पर जाता और वहां घंटों बैठा रहता। आती-जाती लहरों को निरंतर देखता रहता। बीच-बीच में वह कुछ उठाकर समुद्र में फेंकता, फिर आकर अपने स्थान पर बैठ जाता। तट पर आने वाले लोग उसे विक्षिप्त समझते और प्राय: उसका उपहास किया करते थे। कोई उसे ताने कसता तो कोई अपशब्द कहता, किंतु वह मौन रहता और अपना यह प्रतिदिन का क्रम नहीं छोड़ता। एक दिन वह समुद्र तट पर खड़ा तरंगों को देख रहा था। थोड़ी देर बाद उसने समुद्र में कुछ फेंकना शुरू किया। उसकी इस गतिविधि को एक यात्री ने देखा। पहले तो उसने भी यही समझा कि यह मानसिक रूप से बीमार है, फिर उसके मन में आया कि इससे चलकर पूछें तो। वह व्यक्ति के निकट आकर बोला- भाई! यह तुम क्या कर रहे हो? उस व्यक्ति ने उत्तर दिया- देखते नहीं, सागर बार-बार अपनी लहरों को आदेश देता है कि वे इन नन्हे शंखों, घोंघों और मछलियों को जमीन पर पटककर मार दें। मैं इन्हें फिर से पानी में डाल देता हूं। यात्री बोला- यह क्रम तो चलता ही रहता है। लहरें उठती हैं, गिरती हैं, ऐसे में कुछ जीव तो बाहर होंगे ही। तुम्हारी इस चिंता से क्या अंतर पड़ेगा? उस व्यक्ति ने एक मुट्ठी शंख-घोंघों को अपनी अंजुली में उठाया और पानी में फेंकते हुए कहा- देखा कि नहीं, इनके जीवन में तो फर्क पड़ गया? वह यात्री सिर झुकाकर चलता बना और वह व्यक्ति वैसा ही करता रहा। सार यह है कि अच्छे कार्य का एक लघु प्रयास भी महत्वपूर्ण होता है। जैसे बूंद-बूंद से घट भरता है, वैसे ही नन्हे प्रयत्नों की श्रंखला से सत्कार्य को गति मिलती है। अत: बाधाओं की परवाह किए बगैर प्रयास करना न छोड़ें।
वर्तमान
“सदैव वर्तमान में उपस्थित रहने से आपका क्या तात्पर्य है?”, शिष्य ने गुरु से पूछा.गुरु ने शिष्य को एक छोटी जलधारा के पार तक चलने के लिए कहा. जलधारा के बीच कुछ दूरी पर पड़े पत्थरों पर चलकर वे दूसरी ओर आ गए.गुरु ने पूछा, “एक पत्थर पर पैर रखकर अगले पत्थर पर पैर रखना आसान था न?”“हाँ”, शिष्य ने कहा, “क्या यही सीख है कि एक बार में एक पत्थर पर पैर धरना है?”“नहीं, सीख यह है कि…”, गुरु ने कहा, “यदि तुम पत्थरों पर क्रमशः एक-एक करके पैर रखोगे तो पार जाना सरल हो जाएगा. लेकिन यदि तुम हर पत्थर को उठाकर आगे बढ़ना चाहोगे तो तुम डूब जाओगे”.शिष्य जलधारा में जमे हुए विशाल पत्थरों को देखकर यह कल्पना करता रहा कि कोई उन्हें किस भांति ढोकर पार ले जा सकेगा. फिर उसने श्रद्धापूर्वक गुरु को नमन किया. आप हाथी नहीं इंसान हैं !एक आदमी कहीं से गुजर रहा था, तभी उसने सड़क के किनारे बंधे हाथियों को देखा, और अचानक रुक गया. उसने देखा कि हाथियों के अगले पैर में एक रस्सी बंधी हुई है, उसे इस बात का बड़ा अचरज हुआ की हाथी जैसे विशालकाय जीव लोहे की जंजीरों की जगह बस एक छोटी सी रस्सी से बंधे हुए हैं!!! ये स्पष्ठ था कि हाथी जब चाहते तब अपने बंधन तोड़ कर कहीं भी जा सकते थे, पर किसी वजह से वो ऐसा नहीं कर रहे थे.उसने पास खड़े महावत से पूछा कि भला ये हाथी किस प्रकार इतनी शांति से खड़े हैं और भागने का प्रयास नही कर रहे हैं ? तब महावत ने कहा, ” इन हाथियों को छोटे पर से ही इन रस्सियों से बाँधा जाता है, उस समय इनके पास इतनी शक्ति नहीं होती की इस बंधन को तोड़ सकें. बार-बार प्रयास करने पर भी रस्सी ना तोड़ पाने के कारण उन्हें धीरे-धीरे यकीन होता जाता है कि वो इन रस्सियों नहीं तोड़ सकते,और बड़े होने पर भी उनका ये यकीन बना रहता है, इसलिए वो कभी इसे तोड़ने का प्रयास ही नहीं करते.”आदमी आश्चर्य में पड़ गया कि ये ताकतवर जानवर सिर्फ इसलिए अपना बंधन नहीं तोड़ सकते क्योंकि वो इस बात में यकीन करते हैं!!इन हाथियों की तरह ही हममें से कितने लोग सिर्फ पहले मिली असफलता के कारण ये मान बैठते हैं कि अब हमसे ये काम हो ही नहीं सकता और अपनी ही बनायीं हुई मानसिक जंजीरों में जकड़े-जकड़े पूरा जीवन गुजार देते हैं.याद रखिये असफलता जीवन का एक हिस्सा है ,और निरंतर प्रयास करने से ही सफलता मिलती है. यदि आप भी ऐसे किसी बंधन में बंधें हैं जो आपको अपने सपने सच करने से रोक रहा है तो उसे तोड़ डालिए….. आप हाथी नहीं इंसान हैं. लाल फूल वाला पेड़
tree red flowersबहुत पुरानी बात है. किसी राज्य में लोग लाल फूल वाले एक पेड़ की बात किया करते थे लेकिन किसी ने भी कभी उस पेड़ को नहीं देखा था. उस राज्य में चार राजकुमार भाई थे. उन सभी ने उस पेड़ को ढूंढ निकालने का निश्चय किया. प्रत्येक राजकुमार चाहता था कि सबसे पहले पेड़ को वही ढूंढ निकाले.सबसे बड़े राजकुमार ने अपने रथ के सारथी से कहा कि वह रथ को गहरे घने जंगल में ले चले जहाँ उस पेड़ के मिलने की उसे  उम्मीद थी. वह पतझड़ का मौसम था. बहुत प्रयास करने के बाद वह एक अनजान से दिखनेवाले पेड़ के पास पहुंचा. उस पेड़ पर एक भी पत्ता या फूल नहीं था. पेड़ बिलकुल मनहूस झाड़ जैसा लग रहा था. राजकुमार यह नहीं समझ पाया कि लोग उसे लाल फूल वाला पेड़ क्यों कहते हैं. वह चुपचाप वापस आ गया.वसंत के मौसम में दूसरा राजकुमार उस पेड़ को ढूँढने में सफल हो गया. उस समय वह अद्वितीय लाल फूलों से लदा हुआ था.गर्मी के मौसम में तीसरा राजकुमार उस पेड़ तक पहुँच गया. तब तक पेड़ के सारे फूल झड़ चुके थे और वह दूसरे पेड़ों की ही तरह साधारण पेड़ लग रहा था. तीसरा राजकुमार भी मन मसोस कर वापस आ गया.वर्षा ऋतु की समाप्ति के बाद चौथा और सबसे छोटा राजकुमार जंगल में गया और उसने भी लाल फूल वाले पेड़ को ढूंढ निकाला. पेड़ पर बहुत छोटी-छोटी कलियाँ लगने लगी थीं.महल वापस आने पर वह ख़ुशी से फूला नहीं समा रहा था. “मैंने लाल फूल वाला पेड़ खोज लिया! मैंने लाल फूल वाला पेड़ खोज लिया!” – यह चिल्लाता हुआ वह महल में उस स्थान पर पहुंचा जहाँ उसके अन्य भाई खेल रहे थे.“मैंने भी उस पेड़ को ढूंढ निकला” – बड़े राजकुमार ने कहा – “उसमें पेड़ जैसा कुछ नहीं है. वह सर्वथा नग्न और निर्जीव प्रतीत होता है.”“ऐसा कैसे हो सकता है!?” – दूसरा राजकुमार बोल उठा – “उस पेड़ पर तो सबसे सुन्दर और अनूठे लाल फूल लगते हैं! इसीलिए तो उसे लाल फूल वाला पेड़ कहा जाता है!”तीसरा राजकुमार बोला – “कैसे लाल फूल!? उसमें कोई फूल नहीं लगते. वह अन्य पेड़ों की भांति एक साधारण पेड़ ही है. लाल फूल वाला पेड़ संभवतः होता ही नहीं है.”उस सबकी बातें सुनकर चौथा और सबसे छोटा राजकुमार बोला – “मैंने तो उस पेड़ को अपनी आँखों से देखा है! वह निर्जीव पेड़ नहीं है. उसमें सिर्फ कलियाँ या पत्ते भी नहीं लगते. उसमें केवल सुन्दर लाल फूल ही लगते हैं”.पास खड़े राजा ने उन सबकी बहस सुनी और उनको चुप कराया. फिर राजा ने कहा – “बच्चों, तुम सबने एक ही पेड़ को देखा है, लेकिन सबने वर्ष के अलग-अलग मौसम में उसे देखा है.”  बाड़े की कील बहुत समय पहले की बात है, एक गाँव में एक लड़का रहता था. वह बहुत ही गुस्सैल था, छोटी-छोटी बात पर अपना आप खो बैठता और लोगों को भला-बुरा कह देता. उसकी इस आदत से परेशान होकर एक दिन उसके पिता ने उसे कीलों से भरा हुआ एक थैला दिया और कहा कि , ” अब जब भी तुम्हे गुस्सा आये तो तुम इस थैले में से एक कील निकालना और बाड़े में ठोक देना.” पहले दिन उस लड़के को चालीस बार गुस्सा किया और इतनी ही कीलें बाड़े में ठोंक दी.पर  धीरे-धीरे कीलों  की संख्या घटने लगी,उसे लगने लगा की कीलें ठोंकने में इतनी मेहनत करने से अच्छा है कि अपने क्रोध पर काबू किया जाए और अगले कुछ हफ्तों में उसने अपने गुस्से पर बहुत हद्द तक  काबू करना सीख लिया. और फिर एक दिन ऐसा आया कि उस लड़के ने पूरे दिन में एक बार भी अपना temper नहीं loose किया.जब उसने अपने पिता को ये बात बताई तो उन्होंने ने फिर उसे एक काम दे दिया, उन्होंने कहा कि ,” अब हर उस दिन जिस दिन तुम एक बार भी गुस्सा ना करो इस बाड़े से एक कील निकाल निकाल देना.”लड़के ने ऐसा ही किया, और बहुत समय बाद वो दिन भी आ गया जब लड़के ने बाड़े में लगी आखिरी कील भी निकाल दी, और अपने पिता को ख़ुशी से ये बात बतायी.तब पिताजी उसका हाथ पकड़कर उस बाड़े के पास ले गए, और बोले, ” बेटे तुमने बहुत अच्छा काम किया है, लेकिन क्या तुम बाड़े में हुए छेदों को देख पा रहे हो. अब वो बाड़ा कभी भी वैसा नहीं बन सकता जैसा वो पहले था.जब तुम क्रोध में कुछ कहते हो तो वो शब्द भी इसी तरह सामने वाले व्यक्ति पर गहरे घाव छोड़ जाते हैं.”इसलिए अगली बार अपना temper loose करने से पहले सोचिये कि क्या आप भी उस बाड़े में और कीलें ठोकना चाहते हैं !!! मुसीबत
नसरुद्दीन एक शाम अपने घर से निकला. उसे किन्हीं मित्रों के घर उसे मिलने जाना था. वह चला ही था कि दूर गाँव से उसका एक दोस्त जलाल आ गया. नसरुद्दीन ने कहा, “तुम घर में ठहरो, मैं जरूरी काम से दो-तीन मित्रों को मिलने जा रहा हूँ और लौटकर तुमसे मिलूंगा. अगर तुम थके न हो तो मेरे साथ तुम भी चल सकते हो”.जलाल ने कहा, “मेरे कपड़े सब धूल-मिट्टी से सन गए हैं. अगर तुम मुझे अपने कपड़े दे दो तो मैं तुम्हारे साथ चलता हूँ. तुम्हारे बगैर यहां बैठकर मैं क्या करूंगा? इसी बहाने मैं भी तुम्हारे मित्रों से मिल लूँगा”.नसरुद्दीन ने अपने सबसे अच्छे कपड़े जलाल को दे दिए और वे दोनों निकल पड़े.जिस पहले घर वे दोनों पहुंचे वहां नसरुद्दीन ने कहा, “मैं इनसे आपका परिचय करा दूं, ये हैं मेरे दोस्त जलाल. और जो कपड़े इन्होंने पहने हैं वे मेरे हैं”.जलाल यह सुनकर बहुत हैरान हुआ. इस सच को कहने की कोई भी जरुरत न थी. बाहर निकलते ही जलाल ने कहा, “कैसी बात करते हो, नसरुद्दीन! कपड़ों की बात उठाने की क्या जरूरत थी? अब देखो, दूसरे घर में कपड़ों की कोई बात मत उठाना”.वे दूसरे घर पहुंचे. नसरुद्दीन ने कहा, “इनसे परिचय करा दूं. ये हैं मेरे पुराने मित्र जलाल; रही कपड़ों की बात, सो इनके ही हैं, मेरे नहीं हैं”.जलाल फिर हैरान हुआ. बाहर निकलकर उसने कहा, “तुम्हें हो क्या गया है? इस बात को उठाने की कोई क्या जरूरत थी कि कपड़े किसके हैं? और यह कहना भी कि इनके ही हैं, शक पैदा करता है, तुम ऐसा क्यों कर रहे हो?”नसरुद्दीन ने कहा, “मैं मुश्किल में पड़ गया. वह पहली बात मेरे मन में गूंजती रह गई, उसकी प्रतिक्रिया हो गई. सोचा कि गलती हो गई. मैंने कहा, कपड़े मेरे हैं तो मैंने कहा, सुधार कर लूं, कह दूं कि कपड़े इन्हीं के हैं”. जलाल ने कहा, “अब ध्यान रखना कि इसकी बात ही न उठे. यह बात यहीं खत्म हो जानी चाहिए”.वे तीसरे मित्र के घर पहुंचे. नसरुद्दीन ने कहा, “ये हैं मेरे दोस्त जलाल. रही कपड़ों की बात, सो उठाना उचित नहीं है”. नसरुद्दीन ने जलाल से पूछा, “ठीक है न, कपड़ों की बात उठाने की कोई ज़रुरत ही नहीं है. कपड़े किसी के भी हों, हमें क्या लेना देना, मेरे हों या इनके हों. कपड़ों की बात उठाने का कोई मतलब नहीं है”.बाहर निकलकर जलाल ने कहा, “अब मैं तुम्हारे साथ और नहीं जा सकूंगा. मैं हैरान हूं, तुम्हें हो क्या रहा है?”नसरुद्दीन बोला, “मैं अपने ही जाल में फंस गया हूं. मेरे भीतर, जो मैं कर बैठा, उसकी प्रतिक्रियाएं हुई चली जा रही हैं. मैंने सोचा कि ये दोनों बातें भूल से हो गयीं, कि मैंने अपना कहा और फिर तुम्हारा कहा. तो मैंने तय किया कि अब मुझे कुछ भी नहीं कहना चाहिए, यही सोचकर भीतर गया था. लेकिन बार-बार यह होने लगा कि यह कपड़ों की बात करना बिलकुल ठीक नहीं है. और उन दोनों की प्रतिक्रिया यह हुई कि मेरे मुंह से यह निकल गया और जब निकल गया तो समझाना जरूरी हो गया कि कपड़े किसी के भी हों, क्या लेना-देना”.यह जो नसरुद्दीन जिस मुसीबत में फंस गया होगा बेचारा, पूरी मनुष्य जाति ऐसी मुसीबत में फंसी है. एक सिलसिला, एक गलत सिलसिला शुरू हो गया है. और उस गलत सिलसिले के हर कदम पर और गलती बढ़ती चली जाती है. जितना हम उसे सुधारने की कोशिश करते हैं, वह बात उतनी ही उलझती चली जाती है.
जब भिखारी बना दाता और राजा बना याचक Hindi Short Motivational Story - Prernadayak Hindi Kahaniएक भिखारी भीख मांगने निकला। उसका सोचना था कि जो कुछ भी मिल जाए, उस पर अधिकार कर लेना चाहिए। एक दिन वह राजपथ पर बढ़ा जा रहा था। एक घर से उसे कुछ अनाज मिला। वह आगे बढ़ा और मुख्य मार्ग पर आ गया। अचानक उसने देखा कि नगर का राजा रथ पर सवार होकर उस ओर आ रहा है। वह सवारी देखने के लिए खड़ा हो गया, लेकिन यह क्या? राजा की सवारी उसके पास आकर रुक गई। राजा रथ से उतरा और भिखारी के सामने हाथ पसारकर बोला- मुझे कुछ भीख दो। देश पर संकट आने वाला है और पंडितों ने बताया है कि आज मार्ग में जो पहला भिखारी मिले, उससे भीख मांगें तो संकट टल जाएगा। इसलिए मना मत करना। भिखारी हक्का-बक्का रह गया। राजा, देश के संकट को टालने के लिए उससे भीख मांग रहा है। भिखारी ने झोली में हाथ डाला, तो उसकी मुट्ठी अनाज से भर गई। उसने सोचा इतना नहीं दूंगा। उसने मुट्ठी थोड़ी ढीली की और अनाज के कुछ दाने भरे। किंतु फिर सोचा कि इतना भी दूंगा तो मेरा क्या होगा? भिखारी घर पहुंचकर पत्नी से बोला- आज तो अनर्थ हो गया। मुझे भीख देनी पड़ी। पर न देता तो क्या करता। पत्नी ने झोली को उल्टा किया तो उसमें एक सोने का सिक्का निकला। यह देखकर भिखारी पछताकर बोला- मैंने राजा को सभी कुछ क्यों न दिया? यदि मैंने ऐसा किया होता तो आज मेरी जीवनभर की गरीबी मिट जाती। इस प्रतीकात्मक कथा का संकेत यह है कि दान देने से संपन्नता हजार गुना बढ़ती है। यदि हम हृदय की सारी उदारता से दान करें, तो प्रतिफल में दीर्घ लाभ की प्राप्ति होती है।

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